Helping The others Realize The Advantages Of naat lyrics in urdu translation
Helping The others Realize The Advantages Of naat lyrics in urdu translation
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naat lyrics hindi
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है बस मेरा मुद्द'आ मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है उठ के जाऊँ कहाँ मदीने से क्या कोई दूसरा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है उस की आँखों का नूर तो देखो जिस का देखा हुवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दिल में अब कोई आरज़ू ही नहीं या मुहम्मद है या मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दुनिया वाले तो दर्द देते हैं ज़ख़्मी दिल की दवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है दुनिया वाले तो दर्द देते हैं दर्द-ए-दिल की दवा मदीना है क्या बताऊँ कि क्या मदीना है मेरे आक़ा !
मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं ग़ौस-उल-आ'ज़म हो, ग़ौस-उल-वरा हो नूर हो नूर-ए-सल्ले-'अला हो क्या बयाँ आप का मर्तबा हो ! दस्त-गीर और मुश्किल-कुशा हो आज दीदार अपना करा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं सुन रहे हैं वो फ़रियाद मेरी ख़ाक होगी
रुत्बा ये विलायत में क्या ग़ौस ने पाया है अल्लाह ने वलियों का सरदार बनाया है है दस्त-ए-'अली सर पर, हसनैन का साया है मेरे ग़ौस की ठोकर ने मुर्दों को जिलाया है अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! लाखों ने उसी दर से तक़दीर बना ली है बग़दादी सँवरिया की हर बात निराली है डूबी हुई कश्ती भी दरिया से निकाली है ये नाम अदब से लो, ये नाम जलाली है अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! अल-मदद, पीरान-ए-पीर !
तू है इब्न-ए-मौला-'अली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से क़दम गर्दन-ए-औलिया पर है तेरा तू है रब का ऐसा वली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तुम जो बनाओ, बात बनेगी दोनों जहाँ में लाज रहेगी लजपाल ! करम अब कर दो मँगतों की झोली भर दो भर दो कासा सब का पंज-तनी ख़ैर से मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से कहा हम ने '
●नाते-आक़ा पढ़ो दोस्तो अच्छी-अच्छी नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई
नबी का लब पर जो ज़िक्र है बे-मिसाल आया, कमाल आया !
ऐ ज़हरा के बाबा ! सुनें इल्तिजा मदीना बुला लीजिए कहीं मर न जाए तुम्हारा गदा मदीना बुला लीजिए सताती है मुझ को, रुलाती है मुझ को ये दुनिया बहुत आज़माती है मुझ को हूँ दुनिया की बातों से टूटा हुआ मदीना बुला लीजिए बड़ी बेकसी है, बड़ी बे-क़रारी न कट जाए, आक़ा ! यूँही 'उम्र सारी कहाँ ज़िंदगानी का कुछ है पता मदीना बुला लीजिए ये एहसास है मुझ को, मैं हूँ कमीना हुज़ूर ! आप चाहें तो आऊँ मदीना गुनाहों के दलदल में मैं हूँ फँसा मदीना बुला लीजिए मैं देखूँ वो रौज़ा, मैं देखूँ वो जाली बुला लीजे मुझ को भी, सरकार-ए-'आली !
ग़ुरूर उमय्या का तोड़ डाला, दिखा के ईमान वाला जज़्बा
मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं ग़ौस-उल-आ'ज़म हो, ग़ौस-उल-वरा हो नूर हो नूर-ए-सल्ले-'अला हो क्या बयाँ आप का मर्तबा हो ! दस्त-गीर और मुश्किल-कुशा हो आज दीदार अपना करा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं सुन रहे हैं वो फ़रियाद मेरी ख़ाक होगी
حکومت نے چائے کی پتی کی فی کلو قیمت مقرر کردی، نیا نرخ نافذ
सरकार-ए-ग़ौस-ए-आ'ज़म ! नज़र-ए-करम, ख़ुदा-रा मेरा ख़ाली कासा भर दो, मैं फ़क़ीर हूँ तुम्हारा सब का कोई न कोई दुनिया में आसरा है मेरा ब-जुज़ तुम्हारे कोई नहीं सहारा मौला 'अली का सदक़ा, गंज-ए-शकर का सदक़ा मेरी लाज रख लो, या ग़ौस ! मैं मुरीद हूँ तुम्हारा झोली को मेरी भर दो, वर्ना कहेगी दुनिया ऐसे सख़ी का मँगता फिरता है मारा मारा मीराँ बने हैं दूल्हा, महफ़िल सजी हुई है सब औलिया बराती, क्या ख़ूब है नज़ारा ये 'अता-ए-दस्त-गीरी कोई मेरे दिल से पूछे वहीं आ गए मदद को, मैं ने जब जहाँ पुकारा ये अदा-ए-दस्त-गीरी कोई मेरे दिल से पूछे वहीं आ गए मदद को, मैं ने जब जहाँ पुकारा ये तेरा करम है मुर्शिद !
While, Balaghal Ula Be Kamalehi is very fashionable naat recited by every single other naat khwaan even so the way Owais Raza Qadri has presented it, is extremely pretty beautiful. He merged couplets of various naats With this kalam and created it a stunning piece For each naat lover.
نعت وہ نظم ہے جو رسولِ مقبولﷺ کی شان میں کہی جائے۔ پرانے زمانے میں مثنویات کا آغاز عموماً حمد سے ہوا کرتا تھا اور حمد کے بعد مناجات کہی جاتی تھی لیکن آگے چل کر نظم نے ایک مستقل صنف سخن کی حیثیت اختیار کرلی اور پھر مثنویات میں نظم سے ہی آغاز کیا جانے لگا۔ ہماری شاعری میں اس صنف نے خوب رواج پایا۔عربی شاعری میں سب سے پہلے نعت خواں حسان بن ثابت ہیں۔اردو میں اعلیٰ حضرت امام احمد رضا خان بریلوی نے بہت سی مشہور نعتیں لکھی ہیں اور دور حاضر میں بہت سے شعراء اسلام اس صنف میں طبع آزمائی کر رہے ہیں۔
कहाँ जाए, आक़ा ! ये मँगता भला मदीना बुला लीजिए वो रमज़ान तेरा, वो दालान तेरा वो अज्वा, वो ज़मज़म, ये मेहमान तेरा तेरे दर पे इफ़्तार का वो मज़ा मदीना बुला लीजिए जहाँ के सभी ज़र्रे शम्स-ओ-क़मर हैं जहाँ पे अबू-बक्र-ओ-'उस्माँ, 'उमर हैं जहाँ जल्वा-फ़रमा हैं हम्ज़ा चचा मदीना बुला लीजिए हुआ है जहाँ से जहाँ ये मुनव्वर जहाँ आए जिब्रील क़ुरआन ले कर मुझे देखना है वो ग़ार-ए-हिरा मदीना बुला लीजिए जिसे सब हैं कहते नक़ी ख़ाँ का बेटा वो अहमद रज़ा है बरेली में लेटा उसी आ'ला